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रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देते / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देते
वे लोग मुझे आँख भिगोने नहीं देते
ये प्यार है या कोई सज़ा सोच रहा हूँ
मैं सोना भी चाहूँ तो ये सोने नहीं देते
वे रोज़ ही कहते हैं ये सब खेत हैं मेरे
खेतों में मगर बीज वो बोने नहीं देते
चलना भी अगर चाहूँ तो ले आते हैं कारें
वे मुझको मेरा बोझ भी ढोने नहीं देते
यादों के जहाज़ों को लिए घूम रहा हूँ
यादों को समन्दर में डुबोने नहीं देते