Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 19:32

रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देते / जहीर कुरैशी

रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देते
वे लोग मुझे आँख भिगोने नहीं देते

ये प्यार है या कोई सज़ा सोच रहा हूँ
मैं सोना भी चाहूँ तो ये सोने नहीं देते

वे रोज़ ही कहते हैं ये सब खेत हैं मेरे
खेतों में मगर बीज वो बोने नहीं देते

चलना भी अगर चाहूँ तो ले आते हैं कारें
वे मुझको मेरा बोझ भी ढोने नहीं देते

यादों के जहाज़ों को लिए घूम रहा हूँ
यादों को समन्दर में डुबोने नहीं देते