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रोने की आवाज़ आती है? कहाँ? वह / बाबू महेश नारायण

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रोने की आवाज़ आती है? कहाँ? वह,
उफ़ नहीं। हा, अहा। वहाँ वह!
है तो कोई अबला की ध्वनि और प्रीत के रस
की है माती हुई।
अबला का वहाँ
भला क्यों हो गुमां?
न मनुष्य का वाँ था कहीं भी निशां।
तो क्या स्वर्ग को फाड़ परी बरसी है?