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रोप / इरेन्द्र बबुअवा
Kavita Kosh से
पसीने से तर-ब-तर
आम का पौधा रोप रहे हैं काका
ऊपर बादल नहीं
नदी कोसों दूर
रोप रहे खुरपी से
माटी कोड़
काका कहेंगे
पौधा जब बन जाएगा एक पेड़
कभी उसके नीचे सुस्ताते
हमने सींचा है इसे अपने पसीने से
और तब उनकी सारी थकान
बिला जाएगी
मन-ही-मन हहरेंगे
तब-तब,
किसे पता होगा
आज काका सुस्ता रहे हैं
अपनी जि़न्दगी में ख़ूब !