रोया है जबसे यह प्यार मेरे जीवन का / अमरेन्द्र
रोया है जबसे यह प्यार मेरे जीवन का
गीत बना तबसे-शृंगार मेरे जीवन का।
बरसों जब तड़पा तो, फूटे हैं शब्द ये
निकल-निकल अधरों से छूटे हैं शब्द ये
मेरे सब गीतों में शब्दों के अर्थ तुम्ही
सच कह दूँ, तुम बिन तो झूठे हैं शब्द ये
तुमसे क्या याचना-निवेदन हो, जबकि तुम
साधना हो और हो आधार मेरे जीवन का।
पूछो न मुझसे तुम कितना मन स्नेहिल है
भीतर में एक चाँद बाहर से झिलमिल है
एक तुम्हें मालूम है उन्मन-सा क्यों रहता
किससे मैं क्या बोलूं, यह तो मुश्किल है
मैंने तो गीतों में कहा है ये तुम से ही
सूना है तुम बिन संसार मेरे जीवन का।
सच ही तो साथ नहीं होता जब साथी का
जीवन भटकता है, जैसे कोई उल्का
रेत-सा तन उड़-उड़ कर आँखों में गड़ता है
जैसे-विरागी मन लगता सन्यासी का
तुम बिन तो उम्र झुकी, ऐंठी-सी डाली हो
तोड़ गया कोई कचनार मेरे जीवन का।