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रोशनियों का सैलाब / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
मैंने पहले कभी भी
महसूस नहीं की थी
नवम्बर की बरसात ।
पहले कभी मेरे कन्धों पर
नहीं टिका था
इतना सघन बादल
कभी मेरे होठों पर
नहीं हुई थी ऐसी बरसात
पहले कभी
इतनी ख़ूबसूरत
और बड़ी-बड़ी आँखों से
नहीं फूटा था
मेरे जीवन में
रोशनियों का सैलाब ।