भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोशनी फूटलै हे / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जली गेलै ज्ञान-दीप, रोशनी फुटलै हे,
चहूँ दिश भइलै इंजोर हे।
अज्ञान-अन्हरिया में, आबेॅ नहीं रहबै हो
भइलै जे साक्षरता के भोर हे।

हमरा पढ़ाबै लेॅ, आबै वीटी भईया हो
आरो आबै बहिना मोर हे।
नया उमंगोॅ सेॅ आबै हमें सीखबै
छलकै करेजबा कोरे-कोर हे।

आपन्हैं जे पढ़बै गे बहिना, आपन्हैं जे लिखबै
मनोॅ के सपना पूरतै मोर हे।
रोशनी ज्ञानदीपोॅ के , जगमग-जगमग
फूटतै किरण चहूँ ओर हे।

लोगबा जे बोलै हो, बोलिया-कूबोलिया
तनिकोॅ नै काँपै जियरा मोर हे।
चलूँ सखी चलूँ गे बहिना, मिली-जूली पढ़बै
हरसै परणमां पोरे-पोर हे।

साक्षरता-अभियान छेकै, ज्ञान केरोॅ गंगा हे
गंगा में उठलै हिलोर हे।
ऐसन समैया फेरू, घुरी नाहीं अइतौं हो
डूबकी लगाय लेॅ कर जोर हे।