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रोशनी / पुष्पेन्द्र फाल्गुन
Kavita Kosh से
आग में नहीं
भूख में होती है रोशनी
आशाएँ
कभी राख नहीं होती
बालसुलभ रहती है
हिम्मत, ताउम्र
जरूरत
अविष्कार की जननी नहीं, पिता है
लौ लगे जीवन ही
अँधेरे का रोशनदान बन पाएंगे।