रोशन है बज़्मे शोला रुखाँ देखते चलें / मख़दूम मोहिउद्दीन
रोशन है बज़्मे शोला रूखाँ<ref>प्रज्वलित चेहरों की सभा</ref> देखते चलें
इसमें वो एक नूरे जहाँ देखते चलें ।
वा हो रही है मयकदा-ए-नीम शब<ref>अंधेरी रात में मदिरालय</ref> की आँख
अंगड़ाई ले रहा है जहाँ देखते चलें ।
सरगोशियों की रात है रुख़सार-ओ-लब की रात
अब हो रही है रात जवाँ देखते चलें ।
दिल मॆम उतर के सैर-ए-दिले रहरवाँ<ref>चहलक़दमी</ref> करें
आहों में ढल के ज़ब्ते फुग़ा<ref>आर्तनाद का संयम</ref> देखते चलें ।
कैसे हैं ख़ानक़ाह<ref>आश्रम, फ़कीरों और साधुओं के रहने का स्थान</ref> में अरबाब-ए-ख़ानक़ाह<ref>आश्रम के प्रबंधक</ref>
किस हाल में है पीरे मुग़ा<ref>धर्म-गुरू</ref> देखते चलें ।
माज़ी की यादगार सही यादे दिल तो है
तर्ज़े निशाते नौहा गरा<ref>नौहा उर्दू पद्य की एक शैली है, जिसमें कर्बला के शहीदों पर शोक प्रकट किया जाता है</ref> देखते चलें ।
सब वसवसे<ref>बुरे विचार</ref> हैं गर्दे रहे कारवाँ के साथ
आगे है मशअलों का धुआँ देखते चलें ।
आँचल से उड़ रहे हैं फ़ज़ाओं में दूर-दूर
शायद वहीं हो जान-ए-बुताँ देखते चलें ।
आ ही गए हैं रक़्सेगहे गुलरुखाँ में<ref>फूल जैसे चेहरे वालों की नृत्य-सभा</ref> हम
कुछ रंगो बू का सैले रवाँ देखते चलें ।