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रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
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रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया
अब्र को पानी से पतला कर दिया
हुस्न है इक फ़ित्ना-गर उस ने वहीं
जिस को चाहा उस को रूसवा कर दिया
तुम ने कुछ साक़ी की कल देखी अदा
मुझ को साग़र-ए-मय का छलका कर दिया
बैठे-बैठे फिर गईं आँखें मेरी
मुझ को इन आँखों ने ये क्या कर दिया
उस ने जब मुझ पर चलाई तेग़ हाय
क्यूँ मैं अपना हाथ ऊँचा कर दिया
‘मुसहफ़ी’ के देख यूँ चेहरे का रंग
इश्क़ ने क्या उस का नक़्शा कर दिया