भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रो दे तो सावन इठलाये / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
गा दे तो बिछ जाय बहारें
रो दे तो सावन इठलाये
क्या कह दूँ अपनी वाणी से
बोलो यह रोये या गाये
रोना-गाना चीज बड़ी है
दोनों पर जिन्दगी खड़ी है
गाओ बरसें फूल, सिसकने-
पर मोती की लगी झड़ी है
दरस-परस फूलों का सुन्दर
मोती का झर जाना सुखकर
शोभे एक गले में तो दूसरा-
गाल पर शोभा पाये
-17.8.1976