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रो रो के हम ने फर्द-ए-मआसी को धो दिया / रतन पंडोरवी

रो रो के हम ने फर्द-ए-मआसी को धो दिया
अफ़सोस है कि तोशा ख़ताओं का खो दिया

महरूमए-नसीब का शिकवा फ़ुज़ूल है
आया वही तो हाथ में हाथों से जो दिया

मौजों ने हाथ पांव तो मारे मिरे लिए
तक़दीर ने मगर लबे-साहिल डुबो दिया

इतनी ही सर-गुजश्त है बागे-हयात की
गुंचे ने मुस्कुरा दिया शबनम ने रो दिया

दुनिया मिली तो हाथ से उक़्बा निकल गई
इक मुश्ते-ख़ाक के लिए गौहर को खो दिया

ऐ इश्क़ उस करम की मुझे भी है आरज़ू
वो सोज़ दे मुझे भी जो परवाने को दिया

हार आंसुओं का आया हूँ ले कर मैं आप तक
सरमाया जो था पास हुजूरी में ढो दिया

हम ने मज़ाके-फ़न की इनायत से ऐ 'रतन'
हुस्ने-बयां को हुस्ने-ज़बां में समो दिया।