रौदा    उगरे     ऐंगना,      मुर्गी      देवौ      चखना
ठंडा   सें  ठिठुरी  रहलोॅ छैµ बेटा,  भतीजा, भैगना ।
ई  माघोॅ   के  पल्ला   मेॅ,   भीत-दुआरी   खुल्ला    मेॅ
केना रहतै  बुतरू,  ओढ़ना   लेॅ  कानै   छै  बीरना ।
सब्भे आपनोॅ घुसलोॅ घोॅर, होकरौ मेॅ सब बोरसी तोॅर 
रुय्यो  तोॅर भी  जाड़ा  लागै,  की  फीरू ई ओढ़ना ।
कपड़ा  नै  एक  हालोॅ  के, कम्बल  ई  छोॅ सालोॅ के
छाती  ढकोॅ तेॅ  खुल्ला  रहै  छै  माथोॅॅ नीचूँ ठेहुना ।
शीतलहरी  छै  जोरोॅॅ   पर,  प्रान   रहै   छै  ठोरोॅ पर
जेना  कि  काटै  छी  जिनगी,  के  काटै  छै  एहना ?
होॅ-होॅ    हावा    बहै    छै,   हड्डी-हड्डी   डसै    छै
थर-थर काँपांै,  पुरबा   में  पीपर  के  पत्ता  जेहना ।
चहियौं अगर  जों  कीनै  लेॅ कुछ  बेची  केॅ पिहनै लेॅ
पौरकैं  बिकले  साहू  के  कर्जा  दै  मेॅ  सब गहना ।
चेथरी-चेथरी  साटै  छी,  जाड़   केन्हौं   केॅॅ  काटै  छी
की  करवै, जों  आवी  गेलै  हेनोॅ  हाल  में  पहुना ।