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रौद्रतांडव / मीना झा
Kavita Kosh से
एना किएक हवा
लगैत अछि अनठिया
पानी में मिझर
केलक के जहर!
माटिक टुकड़ा-टुकड़ा
एना किएक बखरा
सत्य भेल मूक-बधिर
असत्य किएक जबरा!
अड़हुल-गुलाब रक्त रंजित
कनैल पीत भयभीत
अनीतिक' अछि बोलबाला
नीति किएक पराजित!
शब्द भेल वाणविद्ध
चिंतन क' शव सहित
नोचि खाएल मुदित
विधि–व्यवस्थाक गिद्ध!
सत्यं शिवम् विदग्ध
सुन्दरम् क' कुदरूप प्रारब्ध
परिधि छितराएल क्षुब्ध
केंद्रक' अहं आत्ममुग्ध!
अशिवम् क' रौद्र तांडव
नित्य अछि, अनवरत
अनित्यक अंधमोह रत
सृष्टि केना क' बांचत?