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रौशनी से गुजरते रहे रात भर / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
रौशनी से गुजरते रहे रात भर
ख़्वाब से प्यार करते रहे रात भर
कोई पैग़ाम पाया तुम्हारा नहीं
बेखुदी में सँवरते रहे रात भर
आ के कोई हमें रोक ले ना कहीं
अपने साये से डरते रहे रात भर
था तसव्वुर तुम्हारा हमें छू गया
हम मचलते सिहरते रहे रात भर
शामे फुरकत ने इतना सताया हमे
अश्क़ आंखों से झरते रहे रात भर
याद की पोटली बाँध तो ली मगर
हम सिमटते बिखरते रहे रात भर
जब भी उम्मीद करवट बदलने लगी
हम तो जी जी के मरते रहे रात भर