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रौशन वो दिल पे मेरे दिल-आज़ार से हुआ / अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

रौशन वो दिल पे मेरे दिल-आज़ार से हुआ
इक मारका जो हैरत ओ ज़ंगार से हुआ

जब नख़्ल-ए-आरजू़ पे ख़िजाँ इब्तिला हुई
मैं दस्त-ज़द सवाबित ओ सय्यार से हुआ

इक शम्अ सर्द थी जो मुझे वा-गुदाज़ थी
और इक शरफ़ कि ख़ाना-ए-मिस्मार से हुआ

बैअत थी मेरे दस्त-ए-बुरीदा से ख़िश्त ओ ख़ाक
उस पे सुबुक में साहब-ए-दीवार से हुआ

पैवस्त थे ज़मीं से अफ़आ शजर से तीर
जूँ ही जुदा मैं शाम-ए-अज़ा-दार से हुआ