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रौ-ए-जुनूं में कह गए न जाने क्या से क्या / ईशान पथिक

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रौ-ए-जुनूँ में कह गए न जाने क्या से क्या
मतलब निकल रहे है न जाने क्या से क्या

एक पल में ही बन बैठे हैं देखो वो हमसफर
आंखें भी बात करती हैं न जाने क्या से क्या

लिखता हूं जब भी बढ़ के चूम लेते हैंं जो हाथ
कहते हैं मेरे पीछे वो न जाने क्या से क्या

जो थे कभी सागर कभी चश्मे कभी झरने
है सूखकर के हो गए न जाने क्या से क्या

अब चाह कर भी मुस्कुरा पाता नही है वो
बनकर "पथिक" है रह गया न जाने क्या से क्या