भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लंच बॉक्स / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
मम्मी, छोड़ो लाड़-दुलार,
लंच बॉक्स कर दो तैयार।
सब्जी खूब मसालेदार,
गरम पूरियाँ पूरी चार।
पापड़ हो जाता बेकार,
रख दो चटनी और आचार।
क्यों देतीं केला हर बार,
मम्मी, रखना आज अनार।