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लकीरें / अरविन्द कुमार खेड़े
Kavita Kosh से
तुम्हारे चेहरे पर
जो लकीरें बनी
मेरी हथेलियों में
उभर आई है
इसलिए मैंने देखा नहीं
तुम्हारा चेहरा कभी