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लक्ष्मण शक्ति (फाग) / आर्त

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सर विकल पड़े लक्षिमन रण में, हनुमान जी संजीवनि लाओ
लखन को बचाओ ।।

बोले वैद्य बीति जौ रैना, लखन लाल कै प्राण बचै ना
कोटिक जतन कराओ ।।१||

होय जौ बुधि बल अगम विचारी, तेहि पठवऊ यह विनय हमारी ।।

धौलाचल सो पहुचइ छन में, अब और विलम्ब ना लाओ
लखन को बचाओ ।।

कह रिछेस सुनु पवन कुमारा, राम काज लगि तव अवतारा
निज स्वरुप ना भुलाओ ।।२।।

जेहि बल लान्घेऊ सिन्धु अपारा, अक्षय संहारी असुर पुर जारा ।।

फिर सोई संकल्प भरो मन में, रघुवर कर शोक नशाओ
लखन को बचाओ ।।

राम सुमिर मन चले बजरंगी, सर समान पहुचे रणरंगी
शैल देखि भ्रम खायो ।।३।।

देखि देरि गिरि श्रृंग उपारी, कर धरि चले अतुल बल धारी ।।

नहि विघ्न पड़े मेरे प्रण में, लीलाधर पार लगाओ
लखन को बचाओ ।।

उहाँ विलम्ब देखि रघुराई, करत विलाप अनुज उर लाइ
भ्रात ना मोहि तजि जाओ ।।४।।

विविध भांति विलपत रघुनन्दन, आई गयौ हनुमत दुःख भंजन ।।

सुर बरसैं सुमन गगनांगन में, बूटी मलि वैद्य पिलायो
लखन को बचायो ।।