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लखिकै अपने घर को निज सेवक / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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लखिकै अपने घर को निज सेवक
भी सबै हाथ सदा धरिहैं ।
हल सों सब दूषन खैंचि झटै
सब बैरिन मुसल सों मरिहैं ।
अनुजै प्रिय जो सो सदा उनको प्रिय
कारज ताको न क्यौं सरिहै ।
जिनके रछपाल गोपाल धनी
तिनको बलभद्र सुखी करिहै ।