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लगन उनसे अपनी लगाए हुए हैं / बिन्दु जी

लगन उनसे अपनी लगाए हुए हैं,
जो मुद्दत से मन को चुराए हुए हैं।
उठाएँगे हाथों में मुझको न क्योंकर,
जो नख पर गोवर्धन उठाए हुए हैं।
निकालें भी उनको तो कैसे निकालें,
कि रग-रग में वही तो समाए हुए हैं।
वो रूठे भी हमसे तो पर्व नहीं है,
हम उनके हृदय को मनाए हुए हैं।
जो भरना चाहे अपने दामन को भर ले,
मुहर ‘बिन्दु’ उन पर लुटाए हुए है।