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लगातार रोने से नेत्र सूज गए हैं उसके / कालिदास

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नूनं तस्‍या: प्रबलरुदितोच्‍छूननेत्रं प्रियाया
     नि:श्‍वासानामशिशिरतया भिन्‍नवर्णाधरोष्‍ठम्।
हस्‍तन्‍यस्‍तं मुखमसकलव्‍यक्ति लम्‍बालकत्‍वा-
     दिन्‍दोर्दैन्‍यं त्‍वदनुसरणक्लिष्‍टकान्‍तेर्बिभर्ति।

लगातार रोने से जिसके नेत्र सूज गए हैं,
गर्म साँसों से जिसके निचले होंठ का रंग
फीका पड़ गया है, ऐसी उस प्रियतमा का
हथेली पर रखा हुआ मुख, जो श्रृंगार के
अभाव में केशों के लटक आने से पूरा न
दीखता होगा, ऐसा मलिन ज्ञात होगा जैसे
तुम्‍हारे द्वारा ढक जाने पर चन्‍द्रमा कान्तिहीन
हो जाता है।