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लगा मुझे / प्रेम साहिल
Kavita Kosh से
काग़ज़ के कग़ार पे बैठ गया
एक शब्द
देखते ही पहचान गया मैं
देखा था
मन की मुंडेर पे उतरते
उस शब्द को
अन्य शब्दों के साथ अनेक बार
लेकिन बैठने नहीं दिया उसे
कभी मैंने काग़ज़ पे
आज अचानक अकेला घबराया-सा
बैठ गया काग़ज़ के कगार पे
कैसे हो, उदास!
मैंने उसका नाम लिया पहली बार
बरसों बाद
धीरे से गर्दन उठाई, देखा
पकी उम्र के उस शब्द ने
यही मौक़ा है सेल्फ़पोट्रेट लिखने का
लगा मुझे।