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लगी अंतर मैं, करै बाहिर को / ठाकुर

लगी अंतर मैं, करै बाहिर को, बिन जाहिर, कोऊ ना मानतु है।
दुख औ सुख, हानि औ लाभ सबै, घर की कोऊ बाहर भानतु है॥
कवि 'ठाकुर आपनी चातुरी सों, सबही सब भांति बखानतु है।
पर बीर, मिले बिछुरे की बिथा, मिलिकै बिछुरै सोई जानतु है॥