रचनाकार: आनंद बक्शी |
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
वही आग फिर सीने में जल पड़ी है
लगी आज सावन की ...
कुछ ऐसे ही दिन थे वो जब हम मिले थे
चमन में नहीं फूल दिल में खिले थे
वही तो है मौसम मगर रुत नहीं वो
मेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है
लगी आज सावन की ...
कोई काश दिल पे बस हाथ रख दे
मेरे दिल के टुकड़ों को एक साथ रख दे
मगर यह हैं ख्वाबों ख्यालों की बातें
कभी टूट कर चीज़ कोई जुड़ी है
लगी आज सावन की ...