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लगी लगन, जगे नयन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

लगी लगन, जगे नयन;
हटे दोष, छुटा अयन;

दुर्मिल जो कुछ ऊर्मिल
मिल-मिलकर हुआ अखिल,
घुल-घुलकर कुल पंकिल
घुला एक रस अशयन।

छुटे सभी विषम बन्ध
विषमय वासना-अन्ध;
संशय की गई गन्ध;
शय-निश्चय किया चयन।

कामना विलीन हुई,--
सभी अर्थ क्षीण हुई,
उद्धत शिति दीन हुई,
दिखा नवल विश्व-वयन।