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लगी लत जिसे हो खुशी की हँसी की / रंजना वर्मा
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लगी लत जिसे हो खुशी की हँसी की
उसे क्या फिकर है मेरी बेबसी की
गली है ये दिल की मुहब्बत का रस्ता
नहीं रहगुज़र आम हर आदमी की
न हमदर्दियों का हमे वास्ता दो
जरूरत किसे है यहाँ अजनबी की
अगर ग़म का तड़का न उस मे लगा हो
चली जाये लज़्ज़त सभी शायरी की
रहे दिल मुहब्बत से लबरेज़ तो फिर
मिलेगी न फुर्सत कभी दुश्मनी की
अगर मुफ़लिसों के लिये दिल पसीजा
नहीं फिर जरूरत रही बन्दगी की
खुदाया बड़ी कोशिशें की हैं हम ने
मिली है तभी इक किरन रौशनी की
है बेहिस बहुत यह बुतों का शहर है
चलो हलचलें दें इसे जिंदगी की
हर इक हाल में ढूढ लेता था ख़ुशियाँ
वजह क्या मिलेगी उसे खुदकुशी की