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लगे ऐतन आज पहुना / जयराम सिंह

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भोरे-भोरे छनियाँ के मुडे़रा पर
कौआ कौवी, बाँटे दुन्हुँ चाउर-लगे एतन आज पहुना॥

(1)
चारो दने ललकी किरिनियाँ के जोती,
हरियर पत्ता पर से चुनइत हके मोती,
अंगना बढ़ारे खनि, बामा अंग फरकऽ हे,
अँचरा उघारै माथा-छाती पर से पवना।
भोरे भोरे छनियाँ ... पहुना॥

(2)
घरा के पिछुतिया में, आमा पर से कोयली,
मिसरी से भी जादे, बोलऽ हे मीठ बोली,
आमा के मांजर-मौर-शोभे राजा बसंत के।
मानो बासंती से शादी, रचइतै ई फगुना॥
भोरे भोरे छनियाँ ... पहुना।

(3)
चौंका बरतन करते-करते,
जोरल अगिया सुलगल,
भनसा ले जाइते बखत,
चिपरी जे खरकल,
दिलवा में महकल सुधिया के खिलल फूला,
विरहा के अंत, कंत आवै के ई सगुना।
भोरे भोरे छनियाँ के मुड़ेरा पर ... पहुना।