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लगे बरसने मेह / मुस्कान / रंजना वर्मा
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छम छम लगे बरसने मेह।
पहुँच गये सब अपने गेह॥
आँगन, छत, मुंडेर भीगे
भीगे कपड़े, भीगी देह॥
धूप खिली था खुला गगन
बरखा का न हुआ सन्देह॥
पल में पर मौसम बदला
बरस रहा है नभ का स्नेह॥