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लग लिये होते जो गले / प्रतिभा किरण
Kavita Kosh से
गले लगते भी तो कैसे
लगने के लिए
मानक दूरियों के खानों का
बीसवाँ हिस्सा भर गया एक बच्चा
तुम्हारे-मेरे संयुक्त स्पर्श काल का
निर्णायक
निर्णय टालते भी तो कैसे
धरा से दूर अम्बर नहीं जितने
दूर हमारे हृदय थे
अदृश्य दो हाथों और
अनुपस्थित कन्धों के बाबत
हम मानवजातियों में सूकाय निकले
निकले भी तो कैसे
साबुत खोखले
कहीं लग गये होते गले तो
टकराकर बज ही जाते
और एक-दूसरे में झाँककर
लौटते बीहड़ों में वापस
वापस आकर निहारते भी न कैसे
टकराया, चोट खाया हिस्सा
और वहीं धँसाते उँगलियाँ बार बार
क्षमा करते, न सीझ पाते
अधपके कच्चों से फूटते
लग लिये होते जो गले