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लघु मुहूर्त / समीर वरण नंदी / जीवनानंद दास

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अब जाके दिन के अन्त में तीन अधेड़ बूढ़े भिखमंगे का
अत्यंत प्रशान्त हुआ मन,
धूल माटी गाल भर हवा खाकर-रास्ते किनारे
धूसर हवा से कर लिया नीला मुख आचमन।
क्योंकि अब ये जहाँ जायेंगे उसे कहते हैं लाल नदी
जहाँ धोबी के गधे आकर पानी में
जादुई ढंग से एक-दूसरे की पीठ पर चढ़कर मुख देखते हैं।
फिर भी जाने से पहले तीन भिखारी मिलकर
गोल होकर बैठे, तीन मग चाय पर,
एक वज़ीर, दूसरा राजा, बाक़ी तीसरा नौकर
आपस में किया तय
फिर एक भिखारिन, तीन लँगड़े बूढ़े समधी होने के चक्कर में-
याकि चाय के प्याले पर कुटुम्ब बने हैं जानकर
मिलजुल गये वे चारजोड़ कानों में

हाईड्रान्ट से चाय की ख़ातिर थोड़ा कुछ पानी लेकर
जीवन को कुछ पुख्ता कर लेने के लिए साधुभाव से वे
व्यवहार करने लगे सौंधी फुटपाथ पर बैठकर,
सर हिलाकर दुःख प्रकट किया-पानी-वानी नहीं
चेतलाहाट के हौदे के जल का नल, आज,
काश! ऐसा होता-

महाराज!
भिखारी को एक पैसा देने पर हो गई जेठ-भादो बहू नाराज़।
कहकर वे दढ़ियल बकरे की-सी रूखी दाढ़ी हिलाकर
एक बार लड़की की तरफ़ आँख डालकर
अनुभव किया यहाँ चाय के न्यौते पर
लायी गयी है एक चुड़ैल।

हो सकता है यही लड़की पहली बार हँस रही हो
या अभी हुई है हँस-हँस कर दोहरी।
गिलास से निकालकर दिया और एक गिलास
हम लोगों के पास सोना-चाँदी नहीं पर हममें से कोई नहीं किसी के क्रीतदास।
इन सब बातों की गाज़ सुनकर एक निशाचर कीड़ा
कूद-कूद कर चलने लगा उनकी नाक पर,
नदी के पानी पार बैठकर वे जैसे बेंन्टिक स्ट्रीट में
गिन गये इस पृथ्वी के न्याय-अन्याय
बालों की जूँ मारकर गिन गये न्याय-अन्याय
कहाँ निकला है-कौन ख़रीदता है
क्या-क्या लेन-देन होता है, कौन किसे देता है।

कैसे धर्म का पहिया घूमता है बारीक हवा में।
एक आदमी मर जाए फिर कोई दवा दे दे
फ्री में-तो फ़ायदा किसे-
इसे लेकर चार जने कर गये गोष्ठी।
क्योंकि अब वे जिस देश में जायेंगे उसे कहते हैं उरो नदी
जहाँ खाँसने पर हाड़ की हड्डियाँ बाहर निकलकर
पानी में चेहरा देखने लगती हैं, जितने दिन दिखाई दे।