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लछुमन रेखा के भितरिये कैद हमार जिनिगिया ना / सुभद्रा वीरेन्द्र
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लछुमन रेखा के भितरिये कैद हमार जिनिगिया ना।
छलना आई भेस बदलि, छलि-छलि जाई उमिरिया ना।।
हम ना केकरो आँख क पुतरी
राखीं बक्सा ना हम मुनरी
दरखत खानी टुक्-टुक् ताकीं भोर-साँझ-दुपहिया ना।
सहमि-सहमि क चले सपनवाँ
बिखरल मोती बीनि नयनवाँ
काँटन से अझुराइल खींचे मोर चुनरिया ना।
मन-दरपन कब दरकि क टूटल
आस क गगरी चटकी क फूटल
गहराइल अन्हियारी राति अकुलाइल अँजोरिया ना।
राख में ह सुनगत चिनगारी
उमकि गइल रहिये किलकारी
जमघट बीच अकेला मनवाँ अउँजाइल दरदिया ना।।