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लज्जा शील मोह गृह भारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

लज्जा, शील, मोह गृह भारी, सिंहद्वार गुरुजन का मान।
धर्म-कपाट लगे थे अति दृढ़, ताला था कुल का अभिमान॥
वंशीरव के वज्रपात से टूटा लज्जा-दुर्ग महान।
भूमिसात हो गया सभी कुछ, हु‌ई भूमि सब एक-समान॥