भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लड़का / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
एक छोटा लड़का
गिलास का छींका उठाए
आसपास के
दफ्तरों में देता है चाय
देखता है हसरत से
कुर्सियों को
कुर्सियों पर बैठे चेहरों को
चमक जाता है एक सपना
उसकी आँखों में अचानक जाने कैसे
कि बैठा है वह भी कुर्सी पर
ले रहा है चाय की चुस्की
चुस्की और कुर्सी
में डूबी लड़के की चेतना में करता है प्रहार
दफ्तर का चपरासी
डाँटता है
डाँट से समझदार होकर लड़का
उठाता है जूठे गिलासों को
छींके में रखते हुए
जाने क्या
बुदबुदाता है।