लड़कियां कितनी जल्दी बूढी हो जाती हैं / अंजू शर्मा
ऐनक के पीछे से झांकती थी
चुन्धाती पहाड़ी आँखें,
हँसते ही कुछ बंद हो
ढक जाती थी पलकों की चिलमन के पीछे,
समझाते हुए आचार के मसालों अनुपात
मेरे वे रिश्तेदार अम्माजी खो जाया करती थीं
अतीत के वैभव में,
सोलह साल की अबोध तरुणी
बांध दी गयी अड़तालीस के प्रौढ़ के पल्ले,
मैं मसालों की गणना को याद करते सोचती
कुछ तो गणित रहा होगा रिश्तेदारों के मन में
क्या गिनते होंगे वे दूल्हा-दुल्हिन के बीच के साल
या गिनते होंगे लड़की के ब्याह के बाद
स्वर्गवासी माँ-बाप द्वारा छोड़ी जायेदाद की कमाई
यकीनन हरे नोट भारी पड़ गए होंगे
तरुणी के रुदन पर,
पिता से भी उम्रदराज़ पति के चेहरे को देखती
सिहरी होंगी वे ठीक वैसे ही
जैसा बकरा देखता है सूनी आँखों से
कसाई के छुरे की और,
डेढ़ गुनी उम्र की बेटी का दहेज़
और हमउम्र बेटे के स्कूल बैग संजोते हुए
हर रोज कितना बुढाई होंगी वे
याद है उन्हें कितने फंदे डाले जाते हैं
मर्दों के स्वेटर में
ये भी कि कांजी में कितनी राई पड़ती है,
बस नहीं याद है कि कितना फर्क था
उनकी और बाउजी की उम्र में
सच है हम लड़कियां कितनी जल्दी बूढी हो जाती हैं...