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लड़कियां (4) / हरीश बी० शर्मा

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लड़कियां
अब जुबान खोलने लगी हैं
दायरे तोड़ने लगी हैं
कुछ बोलने लगी हैं
बहुत-कुछ करना चाहती हैं
सबसे पहले
तलाशना चाहती हैं एक साथी
जताना चाहती हैं
मौलिक प्रेम
लेती हैं फैसला अपने-आप।