लड़कियों के सपने / शेखर सिंह मंगलम
आँख आसमान से ज़मीन पे,
औचक उसकी माँग से मीना तक
ढूँढने लगी रिश्ता-
जो पिछले बरस हुआ था।
चिन्ह लापता देख-
आँख लटक गई उसकी छाती पे,
सुना था शहर के सबसे अच्छे सुनार के यहाँ से
बनवाया गया था,
डेढ़ भर का कस्टमाइज्ड मंगलसूत्र।
गोदना भी था,
शायद गोआ हनीमून के दौरान
गर्दन पर गुदवाई थी-
वो नाम जिसके सपने देखे थे उसने बचपन से।
पच्चीस साल के सपने,
पच्चीस साल की रूह,
पच्चीस साल की देह,
शादी की भरसांय में मक्के की तरह फुट लावा बन गई
सफ़ेद लावा यानी सफ़ेद बिना बिधवा हुए।
छोड़ी हुई स्त्रियां-
ठीक उसी तरह ज़माने से सकुचाती हैं-जैसे
कोई गर्भपात कराने को गई
कुँवारी लड़की डॉक्टर से सकुचाती है-या
कोई लड़का जिसे गुप्त रोग हो
और डॉक्टर से समस्या बताने में सकुचाता है।