भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की और औरत / अर्चना कुमारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम...
सवाल लड़की से करते हो
जबाब औरत देती है

लड़की के पास जिद थी
औरत के पास ज़द है

लड़की के पास पंख थे,आसमान था
औरत के पास पैर हैं,धरती है

लड़की के पास सपने थे
औरत के पास आँखें हैं

लड़की बोलती/हँसती ज्यादा थी
औरत मुस्कुराती है बन्द होठों से

लड़की उकेरा करती थी इश्क़
औरत मिटाती है अपना अक्स

लड़की के पास सवाल थे/कलम थी
औरत के पास कागज़ और स्याही है

लड़की रंगती थी लम्बे नाखून हरे रंग से
औरत कुरेदती है अँगूठे से पाँव के नीचे की जमीं

लड़की पालती है 'औरत'
'औरत' गाड़ देती है लड़की पाताल में

लड़की हल्की थी वज़न के हर तराज़ू पर
औरत भारी है बिना तौल ही

लड़की फूँकती थी स्याह/बिखरते थे रंग
औरत बिखेरती है रंग/समेटती है स्याह

लड़की संवलाई सुरमयी खुशनुमा मन्नत थी
औरत शीशमहल सी जन्नत है

तुम सवाल बचाए रखना...
लड़की बचाए रखेगी औरत

"हर बात पर टोकने की बुरी आदत है"
बोलती हैं इतना भी कहीं औरत॥