भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की - 1 / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लड़की
अचानक हो गयी
गुमसुम
भूल गयी हंसना,
चहकना
झूम के चलना

जीवन से
रोज ठन जाती उसकी -
कभी जीतती,
हारती कभी

लड़की की विकास - यात्रा
कम हुई ऊर्जा,
सम्भावनाएं
देख रही हूँ बदलना उसका
हताष बुझी प्रौढ़ा में
और समझ रही हूँ संबंध
जीने और चुकने के बीच