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लड़की / केशव

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लड़की रोज़-रोज़ कहती है
बात करूँगी
समय मिला तो
बात ज़रूर करूँगी

लड़की
नहीं जानती
बात करने के लिए
समय की नहीं
धूप की ज़रूरत होती है
धूप
जिससे बचने के लिए
अक्सर
चश्मा पहने रहती है
लड़की

लड़की
फिर भी कहती है
चढ़ूंगी
धुँध में लिपटे
उस पहाड़ पर
ज़रूर चढ़ूंगी
लड़की नहीं जानती
पहाड़ पर चढ़ने के लिए
लाठी की नहीं
धुंध को चीरने वाली
आरी की ज़रूरत होती है
आरी
जिसके दाँतों को
पैना करने से
डरती है लड़की
सोचती है
मैं उठूँगी
ऊंचाईयों के सपने
मुट्ठी में भरकर
पंछी की तरह
आसमान में उड़ूँगी
लड़की नहीं जानती
उड़ने के लिए
पँखों की नहीं
सपनों की ज़रूरत होती है
पँख
जिनका लड़की के यहाँ रिवाज़ नहीं
लड़की
कितना कुछ कहती है अनकहा
फिर भी करता रहता है
उसकी इच्छा में सुराख़
बहुत कुछ अनकहा ।

2
भले ही न खुले द्वार
सांकल की ओर
हाथ तो बढ़ा ही सकती है
लड़की
पहने रहे कोई लिबास
धूप के लिए
अपनी इच्छा को तो
पकने दे
लड़की
दूसरों के कद से
क्यों सहमी रहती है लड़की
जब अपने ही कद में से
उग सकती है लड़की
अगर आधे मन से बुनना
छोड़ दे लड़की।