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लड़की / ज्योति चावला

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वह लड़की जो चलती फिरती सड़क के किनारे
बैठी है अपने प्रेमी के साथ हाथों में हाथ डाले
उसके लिए यह दुनिया अभी वीरान
यह चलती-फिरती सड़क किसी नदी का निर्जन किनारा

वह लड़की जो अपने प्रेमी से बातें करते हुए
उसमें खो-सी गई है, उसे नहीं याद इस समय
लड़की होने की सारी शर्तें, नियम और क़ायदे

इस समय प्यार में डूबी वह लड़की नहीं जानती
दुनिया और समाज के दायरे जैसा कुछ भी
उसकी सृष्टी तो समा-सी गई है उसके प्रेमी में
जिसे वह जीवन का अन्तिम सत्य मान
भूल गई है सब-कुछ

उस लड़की के भूले हुए सब-कुछ में शामिल हैं
उसके लड़की होने का सत्य
बचपन से ले कर अब तक सिखाई गई वे सीखें
उसका समाज और समाज में तय किया गया
उसका छोटा-सा कोना

प्यार में डूबी इस लड़की के होंठो को
जब छू लेता है उसका प्रेमी बीच सड़क पर अपने होंठो से
तब वह दुनिया को इस प्रेम का गवाह मान
सौप देती है ख़ुद को उसकी बाँहों में
और घर लौटने के वे रास्ते उसे गड्ड-मड्ड से दिखने लगते हैं

लेकिन लड़की को अभी लौटना है वापस उसी घर में
जहाँ लौटते ही नदी का किनारा
चलती-फिरती सड़क में बदल जाएगा
और जहाँ लागू होंगे फिर से वही नियम-क़यदे
और वही शर्तें
लड़की के पहुँचने से पहले पहुँच चुकी होगी
वह सड़क और सड़क के लोग उसके घर तक
लड़की फिर तब्दील हो जाएगी लड़की में