भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की / मोहन साहिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे पास रोज़ एक छोटी लड़की बैठती है
देखती है कोरा-काग़ज़
और उस पर लिखे जा रहे शब्द
नन्ही हथेलियों पर मेहंदी रचाए
शब्द-शब्द पर ताली बजाती है लड़की
कभी सजाकर बैठती नन्ही चोटी में फूल
मेरी कहानी के साथ-साथ बड़ी होती लड़की

मुश्किल है कहानी का अंत करना
और लड़की को संभालना
ख़त्म हो गया है दुखांत कहानियों का दौर
लड़की को लेकर लिखी जाने वाली कहानी
अब सुखांत होगी

लड़की उचक-उचक कर देख रही है
लिखे जा रहे शब्द