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लड़की / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
लड़की चीज़ों को इतने करीब से सोचती है
की चीज़े एक-एक कर बाहर का रास्ता देखने
पर मजबूर हो जाती हैं
लड़की देखती है अपनी शुरुआत को
जो साधारण की हद तक साधारण हुआ करती है
अपने बीच को
जो लगभग यंत्रणा है
और अंत
वह जो
आत्मा को देर तक उलीचने का सबब बन चुका है
अब लड़की खुद चीज़ों से बाहर देखने की स्थिति में
आ पहुँची है
बातें करने लगी है गगन की
और जब लड़की गगन की बात करने लगे तो उसकी
फडफडाहट को समझते
देर नहीं लगानी चाहिये