भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़की चीज़ों को इतने करीब से सोचती है
की चीज़े एक-एक कर बाहर का रास्ता देखने
पर मजबूर हो जाती हैं
लड़की देखती है अपनी शुरुआत को
जो साधारण की हद तक साधारण हुआ करती है
अपने बीच को
जो लगभग यंत्रणा है
और अंत
वह जो
आत्मा को देर तक उलीचने का सबब बन चुका है
अब लड़की खुद चीज़ों से बाहर देखने की स्थिति में
आ पहुँची है
बातें करने लगी है गगन की
और जब लड़की गगन की बात करने लगे तो उसकी
फडफडाहट को समझते
देर नहीं लगानी चाहिये