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लड़की / शैलजा नरहरि
Kavita Kosh से
बहुत ज़ोर से हँसती हो तुम
ऐसे नहीं हँसते
मुसकुराना तो और भी ख़तरनाक है
चलते वक़्त भी ध्यान रखा करो
क़दमों की आवाज़ क्यों आती है
सुबह जल्दी उठा करो
सब के बाद ही सोते हैं
औरों का ख़याल रक्खा करो
सब को खिला कर ही खाते हैं
क्या करती हो
तुम्हें कुछ नहीं आता
कुछ तो सीखो
पराये घर जाना है
हाँ! ठीक ही कहा है
तुम्हारा कोई घर नहीं है
ये घर तुम्हारे पिता का है
फिर होगा तुम्हारे पति का घर
और बाद वाला तुम्हारे पुत्र का
तुम तो लक्ष्मी हो
उन का भी कोई घर नहीं है
लक्ष्मी हो कर भी
चरण दबाती हैं विष्णु भगवान के
चरणों में बैठी हैं युगों से
क्षीर-सागर घर नहीं होता
शेषनाग भी भगवान विष्णु की ही पसंद हैं
लक्ष्मी हो या तुम
भाग्य तो सब का एक सा ही है