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लड़ाई शुरू हो गई / बैर्तोल्त ब्रेष्त / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
लड़ाई शुरू हो गई और राह बेहद मुश्किल
पर तुम मेरे साथ चल रहे हो, मेरे हमराह !
कहीं चढ़ाई है यहाँ, कहीं ढलान, राह पंकिल
पर हम मंज़िल को छुएँगे, मन में है उछाह
हम दोनों भाग रहे हैं और मंज़िल एक हमारी
तेज़ी से बढ़ रहे आगे, मुकाम है बीच डगर
गर गिर जाएगा एक तो होगी यह दुनियादारी
छोड़ उसे बीच राह, बढ़े आगे वो हमसफ़र
जब मंज़िल ग़ुम हो जाए, नहीं दिखाई दे उसे
क्या दूर बहुत है मंज़िल, पूछे अब वो किससे ?
अन्धेरे में भटक गया वो, नुक़सान बहुत हुआ
माथे से पोंछ पसीना, वो बीच राह रुक गया
मैं तुमसे यह कहता हूँ कवि को यह बता दो
कोस भर थी जब मंज़िल, तभी कहीं अटका वो ।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय