भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लडूँगा मैं / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
नयन से दूर हैं जो उन नज़रों से लडूँगा मैं
चमन से दूर हैं जो उन बहारों से लडूँगा मैं
नहीं मैंने कभी की याचना संसार के सम्मुख
स्वयं तक़दीर के अपनी सितारों से लडूँगा मैं।