लड्डन, कंछी, जुम्मन सबको गले लगाएँ नेताजी !
सारी अकड़ छोड़कर अब तो घर-घर जाऍं नेताजी!
जिनके छू जाने भर से ही कल तक मुॅंह बिचकाते थे,
आज लपककर उन्हें स्वयं ही गले लगाऍं नेताजी!
ऊपर हाँँ-हाँँ, अंदर ना-ना, वोटर भी चालाक हुए-
किस करवट को ऊॅंट पसर ले समझ न पाऍं नेताजी!
कल तक कड़वे बोल हवा में गर्मी बिखरा देते थे
अब हॅंस-हॅंस कर पल-पल कैसा रस बरसाऍं नेता जी!
सारे चमचे देर रात को दारू-मुर्गा रौंद रहे
इसीलिए 'अंजुम जी' अब चमचों को भाऍं नेताजी!