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लदवा में रात हमने क्या देखा / नासिर काज़मी

लदवा में रात हमने क्या देखा
आंख खुलते ही चांद सा देखा

क्यारियां धूल से अटी पाईं
आशियाना जला हुआ देखा

फाख्ता सरनिगूं बबूलों में
फूल को फूल से जुदा देखा

उसने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया
उम्र भर जिसका रास्ता देखा

हमने मोती समझ के चूम लिया
संगरेज़ा जहां पड़ा देखा

कमनुमा हम भी हैं मगर प्यारे
कोई तुझ सा खुदनुमा देखा।