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लन्दन डायरी-12 / नीलाभ

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मैं जानता हूँ मैं तुम्हारा विश्वास खो चुका हूँ,
तुम अब मुझे प्यार नहीं करतीं, तुम,
जो मुझे प्यार करती थीं, जैसे कभी
किसी और ने नहीं किया था,

हम एक पथरीले तूफ़ानी किनारे पर
मिले थे, टकराने को बढ़े आते दो
सितारों की तरह, सुख की ऊर्जा में
फूटते हुए, झुलसाते हुए एक-दूसरे
को प्यार की विभोरता के विस्फोट से,

लेकिन अब वह सब बीत चुका है
और मैं लन्दन शहर की इस
भूल-भूलैयाँ में भटकता हूँ
अन्तरिक्ष के अनन्त शून्य में
उड़ते-फिरते किसी नक्षत्र की तरह