भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लपट नष्ट कर रही है / ओसिप मंदेलश्ताम
Kavita Kosh से
|
लपट
नष्ट कर रही है
मेरे इस जीवन को
अब मैं
पत्थर के नहीं
काठ के गीत गाऊंगा
काठ हल्का होता है
होता है खुरखुरा
हृदय बलूत वृक्ष का
और चप्पू मल्लाह के लिए
उसके एक टुकड़े में ही
होता है धरा
अच्छी तरह
ठोंकिए शहतीर
हथौड़ा चलाइए
काठ के स्वर्ग में
जहाँ चीज़ें होती हैं
इतनी हल्की
(रचनाकाल : 1915)